Tuesday, October 12, 2010

माँ मेरी मुझसे अक्सर ये कहती है

माँ मेरी मुझसे अक्सर ये कहती है

ख़ुशी दरवाज़े पर आकर दस्तक देती है

दादी बिस्तर पर बीमार पड़ी है,

चाची भी सिरहाने चुपचाप खड़ी है,

गोलू, मुन्नू, पप्पू भी अब शोर नहीं करते,

चाचा की छोटी बिटिया भी अब चुप रहती है,

फिर भी माँ मेरी मुझसे ये क्यों कहती है,

ख़ुशी दरवाज़े पर आकर दस्तक देती है।

दीदी तो माँ जैसी है उनकी की बातें करना क्या

छोटी की शादी हो गई, उसके संग भी रहना क्या,

जीजू के ज़ुल्मों को मझली चुपचाप सहे जाती,

पहले हस्ती रहती थी, अब गुमसुम रहती है,

फिर भी माँ मेरी मुझ से अक्सर ये कहती है,

ख़ुशी दरवाज़े पर आकर दस्तक देती है।

भैया के संग खेले थे, पल वो रीत गए,

इस घर के खुशियों वाले दिन भी बीत गए,

बापू की सूखी आँखों से एक नदिया बहती है,

फिर भी माँ मेरी मुझसे अक्सर ये कहती है,

ख़ुशी दरवाज़े पर आकर दस्तक देती है।

इस घर में रहकर बच्चे ने इतना तो अब सीख लिया,

सब का कहना कर डाला, पर मन का नहीं किया,

उसकी मम्मी की हालत अब मैं कैसे बतलाऊं,

पहले चिड़िया जैसी थी, अब सहमी रहती है।

माँ मेरी मुझसे अक्सर ये कहती है,

ख़ुशी दरवाज़े पर आकर दस्तक देती है

= दिलशेर "दिल" दतिया

Wednesday, May 12, 2010

- अशआर -
रौशनी में नहाकर चला हूँ।
मैं अंधेरों में हरदम जिया हूँ।
तुम्हे मालूम है? मेरा नाम क्या है?
मैं ताक में जलता हुआ एक दिया हूँ.