Saturday, November 30, 2013

ताज़ा ग़ज़ल
रात के मुसाफिर हैं, सुबहा चले जायेंगे।
प्यार से पुकारोगे, फिर से लौट आयेंगे।

सुबहा फिर समंदर है, कश्तियाँ हैं पानी है,
रात भर जगाया तो नाव क्या चलाएंगे ।

साथ छोड़ जाएँ जब अपने और पराये भी,
कोई नहीं होगा तब, काम हम ही आयेंगे।

उनकी चाहतों में हम इस तरह से डूबे हैं,
होश ही नहीं है जब, हाल क्या सुनायेंगे।

जान भी लुटा दें हम उनके इक इशारे पर,
प्यार इतना करते हैं, क्या वो मान जायेंगे।

घोड़ियों पे सज-धज के हमको नहीं आना है,
हम तो शहर वाले हैं, गाड़ियों से आयेंगे।

आज चाहे ठुकरा दें, तोड़ दें हमारा दिल,
एक दिन उन्हें घर से, डोली ले के जायेंगे।
=दिलशेर "दिल"

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