Monday, January 26, 2009

=ग़ज़ल=

ग़ज़ल बनकर वो मेरे जेहन में आए थे कभी!

खुशियों भरी सौगात वो लाये थे कभी!

ज्यों-ज्यों वक्त गुज़रता गया वो दूर होते गए,

जैसे ज़िन्दगी में नज़र न आए थे कभी!

बुरा वक्त आया तो यारों ने साथ छोड़ दिया,

संग अब वो नहीं, जो साथ साये थे कभी!

गम ज़िन्दगी में उन्ही से ज्यादा मिला है,

जो लबों पे तबस्सुम लाये थे कभी!

शिकायत करूँ तो क्या, उसकी आवारगी की,

हम भी तो आवारा-दिल कहलाये थे कभी!

बनाया था जिन्होंने नशेमन 'दिल' का,

नशेमन पे कहर वो ढाये थे कभी!

=दिलशेर 'दिल' दतिया

=ग़ज़ल=

मेरे दिल की दुनिया लुटाने से पहले!

चला आए कोई, बुलाने से पहले!

ज़मीं ओढ़ लूँगा, अगर वो न आया,

वो आजाये हस्ती, मिटाने से पहले!

न देखा, न जाना, न उससे मिला हूँ,

वो मिल जाए ख़ुद को, भुलाने से पहले!

जो हो सामने तो, ग़ज़ल मैं कहूँगा,

न जाए ग़ज़ल वो सुनाने से पहले!

कई ख़त लिखे हैं, तसव्वुर में 'दिल' के,

वो आ जाए हर ख़त, जलाने से पहले!

=दिलशेर 'दिल' दतिया

Thursday, January 22, 2009


परिचय=


नाम : दिलशेर 'दिल'
जन्मतिथि : 12 जून 1980
शिक्षा : एम. ए. (उर्दू)
पता : गोंडा मोहल्ला, नाजियाई बाज़ार, दतिया (म.प्र।)
मोबाइल : ९९२६२९६४३४
पिता का नाम : श्री शेर बहादुर खान
माता का नाम : श्रीमती रशीदा
व्यवसाय : कंप्यूटर एक्जीक्यूटिव
प्रकाशन : 1- इंतिज़ार (ग़ज़ल संग्रह)=2003, 2- सहरा (ग़ज़ल संग्रह)=2007
सम्मान : "दतिया गौरव" म. प्र. शासन द्वारा (2005),
लेखन : पिछले लगभग 15-16 सालों से ग़ज़ल, कहानी, कविताओं का लेखन व विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन

Wednesday, January 21, 2009

-दोहे-
१)
कर देखे हमने सभी, उल्टे सीधे काम!
मिलता है माँ-बाप की, खिदमत में आराम!
२)
सारे सपने टूटते, नहीं टूटती आस!
अक्सर अश्कों से बुझे, सारे जग की प्यास!
३)
पत्थर-पत्थर जोड़ के, खूब करो निर्माण!
यहीं धारा रह जायेगा, निकलेंगे जब प्राण!
४)
दिल की बातें कर सके, कभी न जिनके साथ!
अनगढ़ रिश्ते बन गए, उनके मेरे साथ!
५)
तुमने देखा आज भी, बस इतना सा ख्वाब!
रोटी हो दो जून की, आंखों भर हो आब!
६)
जैसे भी हो आपके, वो तो हैं माँ-बाप!
ये जानो वरदान तुम, ना मानो अभिशाप!
=दिलशेर 'दिल' दतिया=
-ग़ज़ल-
मिलने नहीं वो आए, कई रोज़ हो गए!
उनसे नज़र मिलाये, कई रोज़ हो गए!
कैसे बताएं उनको परेशान कितना हूँ,
होंटों को मुस्कुराये, कई रोज़ हो गए!
जब से किया पसंद उन्हें, क्या बताएं हम,
मुझको न कोई भाये, कई रोज़ हो गए!
रातों को करवटें मैं बदलता ही रहता हूँ,
आंखों से नींद जाए, कई रोज़ हो गए!
होते थे सामने तो बहक जाते थे क़दम,
अब वो नशा भी छाये, कई रोज़ हो गए!
जाने की प्यार करता हूँ मैं उनसे या नही,
ख़ुद को भी आजमाए, कई रोज़ हो गए!
अपनी ग़ज़ल को आप ही मैं भूलता रहा,
उसको भी गुनगुनाये, कई रोज़ हो गए!
-दिलशेर 'दिल' दतिया

-ग़ज़ल-

किस्मत में क्या लिखा है, बतला रहा हूँ मैं!

हाथों में जाम लेके भी प्यासा रहा हूँ मैं!

सच बोलने की ऐसी है आदत पड़ी हुई,

अपने किए की आप सज़ा पा रहा हूँ मैं!

सोचा नही था हमने की होगा ये एक रोज़,

काँधे पे अपनी लाश लिए जा रहा हूँ मैं!

अश्कों से तर न होती कभी उसकी आस्तीं,

क्यूँ ज़ख्म अपने दोस्त को दिखला रहा हूँ मैं!

डूबी नहीं है कश्ती, भंवर में कभी मेरी,

लहरों के इजतिराब से तंग आ रहा हूँ मैं!

मिन्नत करूँगा गैर से, ये सोचना न तुम,

खुद्दार 'दिल' है, सबको ये समझा रहा हूँ मैं!

-दिलशेर 'दिल' दतिया

Saturday, January 17, 2009

चंद अशआर:

१)

वो हँसता तो है, रो नहीं सकता!

अपनी पलकें भिगो नहीं सकता!

उसकी बातों में सच महकता है,

वो इस ज़माने का हो नहीं सकता!

२)

आंखों में ले के आब, तराने लिखा करो!

यूँ ज़िन्दगी के रोज़, फ़साने लिखा करो!

लेना है लुत्फ़ तुमको अगर सुबहो शाम का,

लफ्जों में खुशगवार ज़माने लिखा करो!

३)

मेरे घर कोई मेहमान नहीं आता!

कोई बरकत का सामान नहीं आता!

वो क्या रूठे, जैसे दुनिया रूठी,

अब कोई ख़त, कोई फरमान नहीं आता!

४)

बचपन जब घर से निकल कर आया!

गिर-गिर कर, संभल-संभल कर आया!

मिटटी के खिलोने की खातिर मेले में,

वो नंगे पावों धुप में चल कर आया!

५)

आगाज़ ये अंजाम तक ले जाए तो!

ये रास्ता किसी मुकाम तक ले जाए तो!

तेरा सफर यहीं पे ख़त्म हो जाएगा,

तू नज़र मेरे कलाम तक ले जाए तो!

=दिलशेर 'दिल', दतिया

-भजन-

ले लो हरी का नाम!

आएगा वो ही काम!

नित नए सपने,

नित नई आशा,

मेरे दिल की,

ये अभिलाषा,

बिगडे बनें सब काम!

ले लो हरी का नाम!

देगा सुख वो,

दुःख के बदले,

वो ही राम है,

रहीम वो पगले,

उसके हैं सब नाम!

ले लो हरी का नाम!

सब ने मुझ को,

बहुत सताया,

मैं प्रभु तेरी,

शरण में आया,

लाज रखो मेरी श्याम!

ले लो हरी का नाम!

=दिलशेर 'दिल', दतिया

Wednesday, January 14, 2009

-ग़ज़ल-

दुश्मन नहीं कोई मेरा इस जहान में!

अपनों से खौफ है मुझे अपने मकान में!

फूलों ने, पत्थरों ने, खिजां ने, बहार ने,

तोहफे मैं दी हैं गालियां अपनी जुबान में!

बेचूं मैं किस तरह, कि खरीदार ही नही,

कांटे हैं बस बचे हुए मेरी दुकान में!

चलता रहा हमेशा मैं एक काफिले के संग,

अब कोई हमसफ़र नही, इस इम्तिहान में!

अखलाक कर बुलंद कुछ इस तर्ज़ से 'ऐ दिल'

तुझसा हो फिर न कोई भी सारे जहान में!

-दिलशेर 'दिल' दतिया

-ग़ज़ल-

आने वाले आकर लौट गए!

शिकवे गिले मिटाकर लौट गए!

दूर बैठा जलता रहा एक सूरज,

सितारे जगमगाकर लौट गए!

उजालों ने ओढ़ ली है स्याही,

चिराग छटपटा कर लौट गए!

लहू, आंसू और न जाने क्या-क्या?

बादल भी बरसा कर लौट गए!

कैंचियाँ हवाओं की थीं मगर शुक्र है,

परिंदे 'पर' बचा कर लौट गए!

-दिलशेर 'दिल' दतिया

-ग़ज़ल-

सस्ता सा व्यापार करो!

आओ हमसे प्यार करो!

दिल तो सबके मुर्दा हैं,

जाओ जेहन पे वार करो!

क्या सिर्फ़ बचोगे आग से 'तुम'

सबको तो हुशियार करो!

उसको भेजा सरहद पर,

ख़ुद को भी तैयार करो!

वो भाग रहा है, जाने दो,

बुजदिल पे मत वार करो!

हिन्दुस्तानी शेर हैं हम,

ये सब पे इज़हार करो!

'दिल' तो बांटे प्यार मुहब्बत,

उससे मत तकरार करो!

-दिलशेर 'दिल', दतिया

==ग़ज़ल==

घौसला जब भी डाल पर रखना!

तिनका तिनका संभाल कर रखना!

राह में सेंकड़ों बिछे कांटे,

हर क़दम देख भाल कर रखना!

एक दिंन तुमसे मिलने आऊँगा!

अपने आँसू संभाल कर रखना!

क्यूँ चमकते हो जुगनुओं की तरह,

खुद को शम्मा सा ढाल कर रखना!

अब तो घर में भी है बहुत मुश्किल,

अपनी इज़्ज़त संभाल कर रखना!

काम है सिर्फ ये सियासत का,

घर में गुंडों को पाल कर रखना!

अच्छी आदत नहीं है काम कोई,

आज का कल पे टाल कार रखना!

सिर्फ इतनी सी इल्तिजा है मेरी,

इस ग़ज़ल को संभाल कर रखना!

= दिलशेर "दिल" दतिया