=ग़ज़ल=
ग़ज़ल बनकर वो मेरे जेहन में आए थे कभी!
खुशियों भरी सौगात वो लाये थे कभी!
ज्यों-ज्यों वक्त गुज़रता गया वो दूर होते गए,
जैसे ज़िन्दगी में नज़र न आए थे कभी!
बुरा वक्त आया तो यारों ने साथ छोड़ दिया,
संग अब वो नहीं, जो साथ साये थे कभी!
गम ज़िन्दगी में उन्ही से ज्यादा मिला है,
जो लबों पे तबस्सुम लाये थे कभी!
शिकायत करूँ तो क्या, उसकी आवारगी की,
हम भी तो आवारा-दिल कहलाये थे कभी!
बनाया था जिन्होंने नशेमन 'दिल' का,
नशेमन पे कहर वो ढाये थे कभी!
=दिलशेर 'दिल' दतिया