Saturday, November 30, 2013

ताज़ा ग़ज़ल
रात के मुसाफिर हैं, सुबहा चले जायेंगे।
प्यार से पुकारोगे, फिर से लौट आयेंगे।

सुबहा फिर समंदर है, कश्तियाँ हैं पानी है,
रात भर जगाया तो नाव क्या चलाएंगे ।

साथ छोड़ जाएँ जब अपने और पराये भी,
कोई नहीं होगा तब, काम हम ही आयेंगे।

उनकी चाहतों में हम इस तरह से डूबे हैं,
होश ही नहीं है जब, हाल क्या सुनायेंगे।

जान भी लुटा दें हम उनके इक इशारे पर,
प्यार इतना करते हैं, क्या वो मान जायेंगे।

घोड़ियों पे सज-धज के हमको नहीं आना है,
हम तो शहर वाले हैं, गाड़ियों से आयेंगे।

आज चाहे ठुकरा दें, तोड़ दें हमारा दिल,
एक दिन उन्हें घर से, डोली ले के जायेंगे।
=दिलशेर "दिल"
एक ग़ज़ल बतौर इस्लाह आप सब की नज़र=

मैं तो भूला हूँ दर्द मुश्किल से।
कोई शिकवा नहीं है कातिल से।

आ ही जाऊँगा मैं पलट के भी,
"मुझको आवाज़ दे कोई दिल से।"

मेरी बातों पे शक नहीं करना,
कोई रिश्ता नहीं है बातिल से।

साज़-ओ-नग्मे भी हो गए गुमसुम,
ये गया कौन उठ के महफ़िल से।

मंजिलों के हों अनक़रीब मगर,
हैं बहुत दूर वो मेरे "दिल" से।
=दिलशेर "दिल"
भागमभाग में की गई एक कोशिश=
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प्यार से जब कोई लिपट जाए।
तीर खुद ही कमाँ से हट जाए।

आंच आने न दें वतन पर हम,
चाहे सिर क्यूँ न अपना कट जाए।

गर सताया कभी कलंदर को,
तख्ते शाही भी फिर पलट जाए।

मैं गुनहगार तू खुदाए करीम,
या इलाही अज़ाब हट जाए।

दिल से करता है जो ख़ुदा को याद,
हर बला उसके सर से हट जाए।
=दिलशेर "दिल"
एक कोशिश=

नफरत के पुजारी न तरफदार हैं हम सब।
"हाँ उन्स-ओ-मुहब्बत के परस्तार हैं हम सब"

दर-दर का भिखारी न समझना कभी हम को,
फितरत से हमेशा ही से खुद्दार हैं हम सब।

बिखरे हुए हैं फिर भी समझना नहीं कमज़ोर,
दुश्मन के लिए आहनी दीवार हैं हम सब।

तुम तन्हा नहीं हो फ़क़त इस जुर्म में शामिल,
ज़हरीली फिजाओं के गुनहगार हैं हम सब।

ऊँगली पे नचाता है ज़माने को वो ए "दिल"
कादिर है हर इक शै पे वो, लाचार हैं हम सब।
=दिलशेर "दिल"
एक कोशिश=

दे दे के थक गए हैं जवाबात किस क़दर।
करने लगे हैं आप सवालात किस क़दर।

वो चाहते यही थे हमेशा से दोस्तो,
तब ही तो बढ़ रहे हैं फसादात किस क़दर।

जो हमख्याल था मेरा, ग़मख्वार था बहुत,
उसके बदल गए हैं ख्यालात किस क़दर।

इक खुशनुमा सहर का है मुद्दत से इन्तिज़ार,
लम्बी है ग़मों से भरी ये रात किस क़दर।

अम्नो अमां के शहर में अफ़सोस है ए "दिल"
बरसा रहे हैं आग ये हालात किस क़दर।
=दिलशेर "दिल"

Friday, January 27, 2012

इश्क में दिल का ये हाल होता है।
उसके बिन जीना मुहाल होता है।
मेरे आंसू उसकी आँखों से निकलते हैं,
प्यार में ये भी कमाल होता है।

Wednesday, November 2, 2011

ghazal

जहाँ भी देखता हूँ बस, तेरे रुखसार के किस्से.
तेरे गुस्से की हैं बातें, तुम्हारे प्यार के किस्से.
अजब है रात का आलम, अजब सुब्हा का है मौसम,
गज़ब तेरी वो अँगड़ाई, गज़ब दीदार के किस्से.