एक कोशिश=
नफरत के पुजारी न तरफदार हैं हम सब।
"हाँ उन्स-ओ-मुहब्बत के परस्तार हैं हम सब"
दर-दर का भिखारी न समझना कभी हम को,
फितरत से हमेशा ही से खुद्दार हैं हम सब।
बिखरे हुए हैं फिर भी समझना नहीं कमज़ोर,
दुश्मन के लिए आहनी दीवार हैं हम सब।
तुम तन्हा नहीं हो फ़क़त इस जुर्म में शामिल,
ज़हरीली फिजाओं के गुनहगार हैं हम सब।
ऊँगली पे नचाता है ज़माने को वो ए "दिल"
कादिर है हर इक शै पे वो, लाचार हैं हम सब।
=दिलशेर "दिल"
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