Wednesday, January 21, 2009

-ग़ज़ल-
मिलने नहीं वो आए, कई रोज़ हो गए!
उनसे नज़र मिलाये, कई रोज़ हो गए!
कैसे बताएं उनको परेशान कितना हूँ,
होंटों को मुस्कुराये, कई रोज़ हो गए!
जब से किया पसंद उन्हें, क्या बताएं हम,
मुझको न कोई भाये, कई रोज़ हो गए!
रातों को करवटें मैं बदलता ही रहता हूँ,
आंखों से नींद जाए, कई रोज़ हो गए!
होते थे सामने तो बहक जाते थे क़दम,
अब वो नशा भी छाये, कई रोज़ हो गए!
जाने की प्यार करता हूँ मैं उनसे या नही,
ख़ुद को भी आजमाए, कई रोज़ हो गए!
अपनी ग़ज़ल को आप ही मैं भूलता रहा,
उसको भी गुनगुनाये, कई रोज़ हो गए!
-दिलशेर 'दिल' दतिया

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