चंद अशआर:
१)
वो हँसता तो है, रो नहीं सकता!
अपनी पलकें भिगो नहीं सकता!
उसकी बातों में सच महकता है,
वो इस ज़माने का हो नहीं सकता!
२)
आंखों में ले के आब, तराने लिखा करो!
यूँ ज़िन्दगी के रोज़, फ़साने लिखा करो!
लेना है लुत्फ़ तुमको अगर सुबहो शाम का,
लफ्जों में खुशगवार ज़माने लिखा करो!
३)
मेरे घर कोई मेहमान नहीं आता!
कोई बरकत का सामान नहीं आता!
वो क्या रूठे, जैसे दुनिया रूठी,
अब कोई ख़त, कोई फरमान नहीं आता!
४)
बचपन जब घर से निकल कर आया!
गिर-गिर कर, संभल-संभल कर आया!
मिटटी के खिलोने की खातिर मेले में,
वो नंगे पावों धुप में चल कर आया!
५)
आगाज़ ये अंजाम तक ले जाए तो!
ये रास्ता किसी मुकाम तक ले जाए तो!
तेरा सफर यहीं पे ख़त्म हो जाएगा,
तू नज़र मेरे कलाम तक ले जाए तो!
=दिलशेर 'दिल', दतिया
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