Wednesday, January 21, 2009

-दोहे-
१)
कर देखे हमने सभी, उल्टे सीधे काम!
मिलता है माँ-बाप की, खिदमत में आराम!
२)
सारे सपने टूटते, नहीं टूटती आस!
अक्सर अश्कों से बुझे, सारे जग की प्यास!
३)
पत्थर-पत्थर जोड़ के, खूब करो निर्माण!
यहीं धारा रह जायेगा, निकलेंगे जब प्राण!
४)
दिल की बातें कर सके, कभी न जिनके साथ!
अनगढ़ रिश्ते बन गए, उनके मेरे साथ!
५)
तुमने देखा आज भी, बस इतना सा ख्वाब!
रोटी हो दो जून की, आंखों भर हो आब!
६)
जैसे भी हो आपके, वो तो हैं माँ-बाप!
ये जानो वरदान तुम, ना मानो अभिशाप!
=दिलशेर 'दिल' दतिया=

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